يا زماناً صار فيه |
ألفُ سقطٍ |
وانكفاءْ |
جذَّرَ الإحباطَ فينا |
فاستوينا |
والحِذَاءْ |
ركَّعَ الهاماتِ منا |
فانتهينا.. |
كالإِمَاءْ.. |
ملأ الساحاتِ فينا |
بالرجال |
السفهاءْ |
فتولوا في احتجابٍ |
وانهزام |
وانزواءْ |
لم نعد نسمع صوتاً |
للشَّهامى.. |
الأقوياءْ.. |
نطلب العونَ ونسمو |
خَوْفَ إِدمانِ |
الولاءْ |
أن يوافونا بدعمٍ |
يا لنا..؟! |
من أغبياءْ! |
أي دعمٍ نرتجيه؟! |
وهمو رأسُ.. |
البلاءْ؟ |
مكَّنوا ((شارونَ)) يلقي |
قاذفاتٍ |
للصلاءْ |
هل جنى ((شارون)) منها |
غيرَ هَدْمٍ |
للبناء؟! |
لم ينلْ إلا سقوطاً |
سالباً منه |
الحياء |
طالما ((للقدس)) شعبٌ |
صامد.. يأبى |
الخساءْ |
سوف لا يرضى بسلمٍ |
محبطٍ فيه |
ازدراء.. |
ستعود الأرض مهما.. |
جارَ.. خصمٌ |
باعتداءْ.. |
أَلْصَقوا الإِرْهَابَ فينا |
إنَّهُ مَحْضُ |
افتراءْ |
نحنُ أسمى في التآخي |
ديننا يرعى |
الإخاءْ.. |
أي إِرْهَابٍ إذا ما.. |
هَبَّ طفلٌ |
للفداءْ؟! |
أو فتاةٌ لا تبالي |
قصفَ آلاتِ |
الفَنَاءْ |
فَجَّرَتْ ((آيَاتُ)) نفساً |
هِيَ أَسْنَى |
من ضياءْ |
قبلها قامت ((وَفَاءُ))
|
باختراقٍ.. ذي |
مَضَاءْ |
أَضْرَمَتْ في الأُفْقِ ناراً |
أشعلتْ كُلَّ |
الفَضاءْ |
ثم هَبَّتْ في اقتِحَامٍ |
((عَنْدِلِيبُ))
|
الكبرياءْ |
لقَّنَتْ ((شَارُونَ)) دَرْساً |
كَيْفَ يَعْلو |
الانتماءْ |
وتوالت فتياتٌ |
كنَّ في العزمِ |
سواءْ |
قامَ ((عَبْدُ اللَّهِ)) فينا |
رافضاً نزفَ |
الدِّماءْ |
كان شهماً وأبياً |
حين عزَّ.. |
الأصدقاءْ.. |
عزَّهُ دمعُ اليتامى |
وصريخٌ.. |
للنساء.. |
جلّه الإيمانُ حساً |
وسموا |
واجتلاءْ |
حمل الأعباءَ عنهم |
بضميرِ |
الشرفاءُ |
كان فذَّاً كان بَرَّاً |
كان أَوْفَى |
الأوفياءْ |
عَلّهُ يَجْني ثِمَارَاً |
بَعْدَ صَبْرٍ |
وعناءْ |
ويعودُ ((القُدْسُ)) قُدْسَاً |
شامخاً شَمْخَ |
((حِرَاءْ))
|
سامحونا إن صُمِمْنَا |
وبدا مِنَّا |
الخَوَاءْ.. |
نَرْتْجَي الصَّفْحَ.. لأَنَّا |
قد جُبُنَّا |
في اللِّقَاءْ |
سُلِبَ الإِحْسَاسُ حتى |
لم نَعُدْ.. نَرْجو |
البَقَاءْ.. |
أَيُّ جَدْوَى من حياةٍ |
دُونَها كَبْتُ |
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