وأُحِسُّ.. |
أَني ههُنَا |
وَحدِي |
المعذَّبُ |
في الدُنَا |
لاَ شيءَ |
من أحْلامنَا |
كنتِ وكانَ لِيَ |
السرورْ |
فَذكرتُ |
سَاعاتِ |
التلاقْ |
أيامَ كنّا |
في انطلاقْ |
نَلهو مع الأملِ |
المساقْ |
وكنتِ لي.. قمري |
الصغيرْ |
أيامَ كنتِ |
لِيَ.. |
الأملْ |
أملِي الَّذِي |
لما أزلْ |
أرنو إليه |
إلى القبل |
من ثغره الحالي |
المثيرْ |
في هَدأةِ |
الليلِ، اللطيفْ |
هنا تناجيني |
طيوف |
فأُحِسُّ في |
قلبي الشَّغُوفْ |
بتراقصِ |
الأملِ |
الكبيرْ |
أَأُودِّعُ الحلم |
القصيرْ.. |
ما عاش |
إلا كالزهورْ |
في دَفَّةِ الروض |
النضير |
وأنَا.. أنَا وحدي |
أسيرْ |
ويطوف بي |
ذاك |
المساءْ |
فَأَهيمُ فيه |
إلى.. اللقاءْ |
إلى سُويعاتِ الهناءْ |
إليكِ يا حبِِّي |
الكبيرْ |
وإِذا تجَافى |
الطَّيْفُ |
عنِّي |
تمُرُّ بي الذِّكرى |
كأنِّي |
لمْ أكُن |
أمسِ |
أغنِّي |
مُسْتَلْهِمَاً دِفْءَ الشُّعورْ |
سأعيشُ |
للذكرى |
لأمسي |
لا لَن أبُوح |
وَلا لنفسي |
ما لم ألاقِ |
صَدىً |
لهمسي |
ويعودُ لي |
قمري الصغيرْ |
لا لن أقول |
بأني تُبْتُ |
أنا مثْلمَا |
كُنتِ.. وكنتُ |
لعينكِ |
الخضراءِ |
عشتُ |
ولِلَحْظكِ |
الطَّاغي |
أسيرْ |