| اليوم حُقَّ البكاءُ |
| حُزنا وعزَّ العزاءُ |
| فقد فَقَدْنا عظيماً |
| آباؤه عظماءُ |
| وسيداً أنجبَتْهُ |
| الفطاحل النجباءُ |
| كانت به تتباهى |
| على الدُّنَّـا "صنعاءُ" |
| مؤرِّخ وأديبٌ |
| وناقدٌ بنّاءُ |
| وفي الحديث إمامٌ |
| تؤمُّه الفقهاءُ |
| وكانَ للحق صوتاً |
| تُصغي له الآناءُ |
| تهابُه إذ يُدَوّي |
| الملوكُ والزعماءُ |
| * * * |
| قبل "الثلاثين" ولَّى |
| وعِرضُهُ وضّاءُ |
| فلم يقارفْ حراما |
| ولا ازدهاه ثناءُ |
| ولا ثَناهُ عن الحـ |
| ـق خيفة أو رجاءُ |
| * * * |
| يا "ابْنَ الوريث" |
| عن الشعْر هاك مني الرثاءُ |
| لو استطاعت أبانَتْ |
| عن حُزْنِها الفُصْحاءُ |
| بالصَّمْت دهراً طويلاً |
| كلامُه الإِيماءُ |
| وارتجَّ كلُّ بليغٍ |
| وأعْيَتِ الشُّعراءُ |
| * * * |
| كانت إليك تولّي |
| وجوهها الضعفاءُ |
| والظالمون يخافون |
| منك والسفهاءُ |
| وكُنْتَ تَزْحَف ثبتاً |
| وفي يديك اللواءُ |
| بحكمةٍ، واتزانٍ |
| وحولَكَ الأولياءُ |
| تدعو إلى كل خيرٍ |
| كما دعَا الأوصياءُ |
| واليوم قد خَمدَ الصَّـ |
| ـوت واسْتحال الضِّياءُ |
| فَلْيبكِ كلُّ يمانِ |
| ولْتَحْزَنِ الأذواءُ |
| ولْينفطرْ قلب "بلقي س" ولْتَضِجَّ النساءُ |
| "مُحَمَّدٌ" و"عليٌّ" |
| أخوه و"الزَّهراءُ" |
| أرضاهُمو منكَ فضْلٌ |
| وعِفَّةٌ وإباءُ |
| قدْ يُستغاثُ صراخٌ |
| وقد يُجابُ نداءُ |
| * * * |
| يا "ابن الوريث" ابتهالٌ |
| صلاتنا والدُّعاءُ |
| في الخلْدِ فانعم سعيداً! |
| لنا سيَبْقى الشَّقاءُ |