| يا من بخطِّ النَّارِ.. لِلنار الوَقّودُ |
| في يومهِ |
| يوْم الرُّؤى. |
| يوم الضبابْ |
| إنَّا معكْ.. إنَّا معَكْ.. |
| إنَّا سواءْ.. إِنَّا سواءْ.. |
| جنباً.. لجنبْ.. وعلى الطريقْ |
| وبكلِّ دربْ!. |
| * * * |
| أَرأيتْ؟! |
| مُدَّتْ رقابٌ.. في الظلام.. إلى رقابْ |
| وتهامستْ.. همس الملامةِ.. والعتابْ |
| وتناقلتْ.. ذكرى الشدائد.. والعذابْ |
| وتلفتَتْ؟! |
| وتلفتتْ.. حيرى.. تقاذفها العُبابْ |
| والزورقُ المهتزُّ.. قد أَرْخى الشراعْ |
| يمشي بهم.. يمشي بنا.. |
| قد حفهُ.. |
| قد لفهُ.. |
| روْقُ الضبابْ!. |
| * * * |
| أَسَمِعت؟! |
| أمَّا أنا.. فلقد سمعتْ |
| إني سمعتُ أَبي.. وأُمّي.. |
| إني سمعتُ أَخي.. وأُختي.. |
| والطفْل.. والبنت الصغيرةْ |
| وحديث جيراني الطويلْ |
| الساهم.. الواني.. الحزين |
| شكوى الصِّحابْ.. |
| إلى الصِّحَابْ |
| مُتحلِّقينْ.. |
| مُتواثبينْ.. |
| هَدَّارةً أصواتُهُمْ |
| رجراجةً نظراتُهُمْ.. |
| واليوْمْ!. |
| واليوْمُ.. بين سحابِهِ |
| وغيومِهِ.. |
| بعْد العواصِفِ.. والرُّعُودْ.. |
| قَد حَفَّهُ.. |
| قد لفهُ.. |
| روْقُ الضبابْ! |
| * * * |
| ويلُ المنافق!. |
| يا عربْ |
| ويلُ المنافق.. إنْ أَتى |
| ويلُ المنافق.. إن ذهبْ |
| هلْ جاءَكم.. نبأُ الكلابْ |
| نبأُ الكلاب الغَادرهْ |
| وأَتى لكم.. خبرُ الذِّئابْ |
| خبرُ الذِّئاب الفاجرةْ |
| كنا لهم.. كنَّا لهُمْ |
| كنا.. أُسوداً كاسرةْ |
| وبظلنا.. |
| في فَيْئِهِ.. |
| وبجمْرِنا.. |
| في حرِّهِ.. |
| عدنا.. قلوباً.. صابرةْ |
| في يومنا.. يوْم العذابْ |
| قد حفهُ.. |
| قدْ لفَّهُ |
| روْقُ الضَّبابْ!! |